Wednesday 5 October 2016

वक़्त रूक जाना

वक़्त रूक जाना.............



वक़्त रूक जाना यही
थम जाना उस पल
जब अपने करीब हो
इन नजरो के नजदीक हो
बस उस पल वही रुक जाना
ऐ वक़्त जरा थम जाना

जीने देना उन लम्हों को
जीभर के
करने देना उन पलो को
उन यादों को कैद इन नजरो में
उड़ने देना ख्वाबो के पर लिये
बस युही संग अपनो के
वक्त तू रूक जाना
बस यही थम जाना

जाने कब ये पल आये फिर ऐसे
ऐ वक्त थोडा वक्त देना
इन पलों को समेटने के लिये
यादों में अपने
ऐ वक्त थोडा तो ठहर जाना
बस कुछ वक्त के लिए रूक जाना

तन्हाइयो में अपने फिर
उन पलो के सहारे ही जी लेंगे
याद करके उन लमहो को
तन्हाइयो का सफ़र काट लेंगे

बस एक ही अहसान ऐ वक़्त तू करना

कुछ वक्त के लिए बस यही रुक जाना।।।।।। 

Saturday 9 July 2016

खेळ मनाचा

खेळ मनाचा....................


सुख असो किंवा दुःख असो
हे सर्व कही आहे फक्त
खेळ मनाचा।

मन चांगल असल तर
दुःखात ही आनंद मिळतो
कुठे तरी कस तरी मना चा धीर असतो

मन निराश असल जर
आनंदात ही निराशा च वाटते
किती जरी काही जरी केल तरी
फक्त निराशा च हाती लागते

मन असल आशावादी जर
एकटेपणा ही जाणवत नाही
एकांतात ही मना ची सोबत मिळते
कसला च तणाव उरत नाही

मन होत बेचैन जेंव्हा
गर्दीत पण एकान्त वाटतं
ह्या एकटेपणा मुळे
जणूआपल्यावर मोठ आभाळ च

कोसळले अस जाणवत

खरच  सुख आसो किंवा दुख आसो
मन च हे सर्व खेल रचवतो..................

Sunday 24 April 2016

मैं मुसाफिर हूँ

मैं मुसाफिर हूँ........................



ज़िन्दगी क़े सफ़र में,
मैं मंज़िल तलाशती हूँ
मैं मुसाफिर हूँ

घुमती हूँ मैं मुक़ामो के शहरों में,
कभी इस शहर तो कभी उस शहर
सुख के घर का कोई ठिकाना नहीं
बस चलती रहती हूँ मैं यूँही, कोशिशों के रास्ते पर

कभी आती है असफलता की भयंकर आँधी
और चिर के रख देती हैं आत्मविश्वास का कवच,
लेकिन सी देती हूँ मैं उसे फ़िर
उम्मीद के धागे से बनाने फिर वही कवच

कभी गिरती हूँ
खाकर ठोकर मुश्किलो की दीवारो से,
लेकिन उठ जाती हूँ फिर
हिम्मत के इटो के सहारे से

कभी मिलति है तन्हाइयो की भीड़
और धूंधला सी जाती है नज़र
लेकिन विश्वास के ऐनक के सहारे
दिख जाती है कहीँ दूर खड़ी मेरी मंज़िल

और फ़िर मैं निकल पड़ती हूँ,
क्योंकि मैं मुसाफ़िर हूँ,
मैं मंजिल तलाशती हूँ |









Tuesday 1 March 2016

तू असताना तू नसताना

तू असताना तू नसताना.........

तू असताना तू नसताना
मन हे सतत विचार करतो की नक्की काय
अंतर असतो

तू असताना घर हे कसे, वाटे अगदी भरलेले
तू नसताना तेच घर जणू मला खाऊ लागतो
बहुदा हाच अंतर असतो

तू असताना वेळ चा काही च भान नसतो
मात्र तू नसताना तिच वेळ जाता जात नाही
बहुदा हाच अंतर असतो

तू असताना मन हे माझे सदैव हसरी असते
तू नसताना मन हे एकांतात जाऊ लागतो
बहुदा हाच अंतर असतो

तू असताना जीवा ला , माझा मना ला एक साथ असते
एक हिम्मत , एक विश्वास , एक शक्ति असते
आणि तू नसताना जणू सगळ च हरवुलागत
बहुदा हाच अंतर असतो